बरसात में
धरती का इक टुकड़ा
गया था भीग .....
बहुत खुश थी
उसकी सौंधी खुशबू
समेटने में ........
आज
यकायक ,बरस पड़ा
सूरज का आक्रोश
उसी टुकड़े पर ...
और वो
गिनने लगी द्र्रारे
पपड़ाई जमीन पर ..................
{.....अनन्या .....}
..............................................................................................
(२)
भटकते ,
फैला दी बाहें
धरती ने ,और
धरती ने ,और
दे दी पनाह
अपने आँचल में
......
अपने आँचल में
......
अगली सुबह
देखा
देखा
मुस्कुरा रहा था
नीला आकाश
लेकिन
नम था
नम था
धरती का आँचल
शायद
रात भर रोने के कारण ...........!!
रात भर रोने के कारण ...........!!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, यहाँ भी पधारे
जवाब देंहटाएंरिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
दोनों ही रचनाएँ सुंदर
जवाब देंहटाएंविसंगतियों के बीच ही पनपता है जीवन......सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति ....
जवाब देंहटाएंकोमल एवं मन को गहरे तक छू लेनेवाले सुन्दर भावोँ की अभिव्यक्ति । बधाई । सस्नेह
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओँ की आशा करता हूँ । शुभकामनाएँ । सस्नेह
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओँ की आशा करता हूँ । शुभकामनाएँ । सस्नेह
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